बरसता दिन है बारिश की नमी है
भीगे फूलों में लिपटी सी जमीन है
चलो इनसे भी कोई बात कर लें
खिड़की के बंद शीशे पार उनके
एक लता छुईमुई सी चुपके चुपके
दस्तक देती है मुलाकात कर लें
यों ही कमरे में हम चुपचाप बैठें
आँखें मूँद कुछ खोये से लेटें
चलें हम आज ख़ुद से बात कर लें
मुद्दतें हो गयीं परियों के किस्से
जो कल तक सब रहे हमारे हिस्से
उन्हें ढूंढे कोई ऐसी रात कर लें
No comments:
Post a Comment