Tuesday, July 14, 2009




बरसता दिन है बारिश की नमी है


भीगे फूलों में लिपटी सी जमीन है


चलो इनसे भी कोई बात कर लें


खिड़की के बंद शीशे पार उनके


एक लता छुईमुई सी चुपके चुपके


दस्तक देती है मुलाकात कर लें


यों ही कमरे में हम चुपचाप बैठें


आँखें मूँद कुछ खोये से लेटें


चलें हम आज ख़ुद से बात कर लें


मुद्दतें हो गयीं परियों के किस्से


जो कल तक सब रहे हमारे हिस्से


उन्हें ढूंढे कोई ऐसी रात कर लें

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