Tuesday, July 14, 2009

वो जो आसमान पे बैठा है हरुफ बिगाड़ने की साजिश में

कि बाज़ी पलट भी जाती है जरा सी मोहरों कीजुम्बिश में

सफर में उस जगह जायें क्योंकर जहाँ से रात आके मिलती हो

कोई तो मोड़ उस जगह होगा किजहाँ सुबह आके खिलती हो

खुदा के बाजुओं में इन दिनों ताकत कहाँ इतनी

कि धर के हाथ शाने पे हमारे कोई राहत दे

कि हम तो शिद्दत्तों से बारहा सजदे में झुक जाएँ

उससे बन पड़े तो मेरे वीराने को रंगत दे

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